बलौदाबाजार, 08 अक्टूबर 2025/sns/- जिले में धान की फसल बाल निकलने से लेकर दाना भरने की अवस्था में है जो फसल के विकास का अत्यंत संवेदनशील चरण माना जाता है। इस अवस्था में पौधों को भरपूर पोषण, उपयुक्त नमी तथा रोग व कीट से संरक्षण की आवश्यकता होती है। पिछले कुछ दिनों से हल्की वर्षा, बादल छाए रहना और रात के समय अधिक आर्द्रता का वातावरण बना हुआ है। दिन में हल्की धूप, शाम के समय उमस, तथा रात में ठंडी और आर्द्र जलवायु का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। औसतन रात के समय आर्द्रता 85 से 95 प्रतिशत तक पहुँच रही है, साथ ही तापमान 25 से 30 सेल्सियस के बीच बना हुआ है, जो फफूंदजनित और जीवाणुजनित रोगों के प्रसार के लिए अत्यधिक अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न कर रहा है।
इस समय खेतों में पौधों की बढ़वार घनी होने के कारण हवा का पर्याप्त आवागमन नहीं हो पा रहा, जिससे खेतों में नमी लंबे समय तक बनी रहती है। यही स्थिति ब्लास्ट, शीथ ब्लाइट तथा बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट (बीएलबी) जैसे रोगों के तीव्र प्रसार के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करती है। साथ ही, फसल के दाना भरने की अवस्था में खेतों में जलभराव और अत्यधिक नमी की स्थिति में भूरा महुए कीट का प्रकोप तेजी से बढ़ने की संभावना है। यह कीट पत्तियों के निचले हिस्से में छिपकर रस चूसता है और पौधे को धीरे-धीरे कमजोर कर देता है। गंभीर अवस्था में हॉपर बर्न की स्थिति बनती है, जिसमें पौधे सूखकर झुक जाते हैं। इसके अतिरिक्त, तना छेदक कीट की गतिविधियाँ भी सक्रिय हो रही हैं, जिससे पौधों में डेड हार्ट और व्हाइट ईयर हेड जैसी अवस्थाएँ दिखाई दे सकती हैं। वहीं, हाल के वर्षों में पैनिकल माइट नामक सूक्ष्म कीट का प्रकोप भी बढ़ा है, जो बालियों में दाने भरने को प्रभावित करता है, जिससे दाने बदरंग रह जाते हैं और फसल की गुणवत्ता घटती है। मौसमी दशाओं को देखते हुए यह भी देखा जा रहा है कि खेतों में नाइट्रोजन उर्वरक का अत्यधिक प्रयोग, घनी बुआई, जलभराव और सिंचाई के अनुचित प्रबंधन के कारण रोग एवं कीट संक्रमण की संभावना और अधिक बढ़ जाती है। अतः किसानों को चाहिए कि वे फसल की नियमित निगरानी करें, प्रत्येक से 3 दिन में खेत का निरीक्षण करें, विशेष रूप से निचले भाग की पत्तियों और तनों को ध्यानपूर्वक देखें।
धान की बीमारियां
ब्लास्ट रोग-यह फफूंदजनित रोग पाइरिकुलेरिया ओराइजे से होता है। प्रारंभ में पत्तियों पर छोटे-छोटे हल्के बैगनी रंग के छोटे-छोटे धब्बे बनते हैं जो धीरे-धीरे बढ़कर आँख के सामान बीच में चौड़े तथा किनारों पर संकरे हो जाते हैं। रोग बढ़ने पर बालियों की गर्दन पर संक्रमण होता है जिससे बालियाँ काली होकर झुलस जाती हैं और दाने नहीं भरते। इसके नियंत्रण के लिए ट्राईफ्लोक्सीस्ट्राबिन 25 टेबुकोनाजोल 50 प्रतिशत डब्ल्यू बी, 0.4 ग्रा./लीटर पानी में छिंडकाव 12-15 दिन के अंतर से करे।रोगग्रस्त खेत में नाइट्रोजन की अतिरिक्त मात्रा न दें और अच्छी जल निकासी सुनिश्चित करें।
शीथ ब्लाइट -यह रोग राइजोक्टोनिया सोलानी नामक फफूंद से होता है। सबसे पहले निचली पत्तियों की म्यान पर गोल या दीर्घाकार भूरे धब्बे बनते हैं जो बाद में ऊपर की ओर फैलकर पत्तियों को सुखा देते हैं। पौधों में हवा का आवागमन बाधित होने पर रोग तेजी से फैलता है।खड़ी फसल में रोग का प्रकोप होने पर हेक्साकोनाज़ोल कवकनाशी/1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें। संक्रमित पौधों के अवशेषों को खेत से बाहर कर दें।
बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट (बीएलबी) -यह जीवाणुजनित रोग जैथोमोनस ओराइजी से होता है।पत्तियों के सिरे से पीले रंग की धारियाँ बनती हैं जो धीरे-धीरे भूरे रंग की होकर नीचे की ओर फैलती हैं। गंभीर अवस्था में पत्तियाँ पूरी तरह सूख जाती हैं जिससे दाने नहीं बनते।
स्ट्रेप्टोसाइक्लिन/1 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी का छिड़काव करें। हल्की अवस्था में केवल कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यू पीए 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी पर्याप्त है।
शीथ रॉट-यह रोगफफूंदों द्वारा होता है।बालियों के नीचे की म्यान पर भूरे या ग्रे रंग के धब्बे बनते हैं। प्रभावित हिस्से में सफेद या गुलाबी रंग का कवक दिखाई दे सकता है। रोग गंभीर होने पर बालियाँ सड़ी हुई दिखती हैं, दाने अधूरे या झुलस जाते हैं। नमी और घनी फसल में रोग तेजी से फैलता है।कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी / 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या हेक्साकोनाजोल/1 मि ली प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें। बालियों के फूल आने से पहले या दाना भरने की प्रारंभिक अवस्था में छिड़काव करें।
धान में कीट प्रकोप- भूरा माहों कीट। यह कीट पौधों के तनों के निचले भाग में रहकर रस चूसता है जिससे पौधे पीले होकर सूख जाते हैं और झुके हुए दिखाई देते हैं ।
न खेत में पानी का स्तर घटाएं और अंतराल सिंचाई करें।
ऽ बुप्रोफेज़िन 25 एससी/1 लीटर प्रति हे. या पाईमेट्रोजिन 50 डब्ल्यूजी 300 ग्राम/हेक्टेयर या डाईनेट्राफ्युरोंन 20 एसजी/200 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करें। छिड़काव नीचे की ओर पत्तियों के तने वाले भाग पर करें क्योंकि कीट वहीं छिपे रहते हैं।
पैनिकल माइट -पैनिकल माइट (मकड़ी) के अधिक प्रकोप की अवस्था में दानों का विकास अधूरा रह जाता है, बालियों का रंग कत्थई या धूसर दिखता है और कई दाने पोचे या बदरा रह जाते हैं।डाईफेनथ्युरोंन 50 डब्ल्यूपी/ 120 ग्राम प्रति एकड़ तथा प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी का 200 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से मिलाकर 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें।
तना छेदक कीट-कीट पौधे के तने में अंडे देते हैं, जिससे पौधे का अंदरूनी भाग खोखला हो जाता है। पौधे की पत्तियाँ सफेद होकर सूख जाती हैं और बाली आने पर सफेद बाली दिखाई देती है।क्लोरांट्रानिलिप्रोल 18.5 एससी/ 150 मिली प्रति हे. या फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एससी/1 लीटर प्रति हे. का छिंडकाव करे।