जगदलपुर, 15 जुलाई 2025/sns/- राज्य शासन किसानों को खेती-किसानी हेतु उन्नत तकनीक सुलभ करवाने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से नैनो डीएपी को बढ़ावा दे रही है। जो पैदावार बढ़ाने के लिए भी उपयोगी साबित हो रही है। इसी क्रम में अब साधारण डीएपी के स्थान पर नैनो डीएपी को विकल्प के तौर पर आसानी से उपलब्ध कराया जा रहा है। किसान अब सहकारी समितियों के साथ ही निजी प्रतिष्ठानों से आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। उपसंचालक कृषि श्री राजीव श्रीवास्तव ने कृषि समसामयिक सलाह में किसानों को डीएपी के स्थान पर वैकल्पिक रूप में नैनो डीएपी का उपयोग करने का आग्रह करते हुए इसे लैम्पस समितियों से उठाव किए जाने कहा है।
उल्लेखनीय है कि सामान्य डीएपी (डाई-अमोनियम फॉस्फेट) एक पारंपरिक दानेदार उर्वरक है, जो यह दानेदार रूप में होता है। इसे मुख्य रूप से मिट्टी में सीधे मिलाकर (बुवाई के समय) प्रयोग किया जाता है। इसके बड़े कणों के कारण, पौधों द्वारा पोषक तत्वों का अवशोषण तुलनात्मक रूप से कम होता है, जिससे कुछ पोषक तत्व मिट्टी में अप्रयुक्त रह सकते हैं या लीचिंग (रिसाव) के माध्यम से बर्बाद हो सकते हैं। यह भारी और बड़े बैग में आता है, जिससे इसका परिवहन और भंडारण अधिक खर्चीला और मुश्किल होता है। इसके अधिक उपयोग से मिट्टी, जल और वायु प्रदूषण का जोखिम बढ़ सकता है। वहीं नैनो डीएपी एक तरल नैनो-उर्वरक है जिसे नैनो टेक्नोलॉजी का उपयोग करके विकसित किया गया है। यह तरल रूप में होता है। इसकी नैनो-कण तकनीक इसे कहीं अधिक कुशल एवं प्रभावी बनाती है। इसे पत्तियों पर छिड़काव (फोलियर स्प्रे) या बीज उपचार के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके कणों का आकार 100 नैनोमीटर से कम होता है, जिससे इनका सतह क्षेत्र-से-आयतन अनुपात बहुत अधिक होता है। यह पौधों द्वारा पोषक तत्वों के बेहतर और तीव्र अवशोषण को सुनिश्चित करता है। 500 मिलीलीटर नैनो डीएपी की एक बोतल 50 किलोग्राम सामान्य डीएपी के बराबर प्रभावी हो सकती है। यह छोटी बोतलों में आता है, जिससे इसका परिवहन और भंडारण बहुत आसान और कम खर्चीला होता है। यह पर्यावरण के अधिक अनुकूल है क्योंकि इसके उपयोग से पोषक तत्वों की बर्बादी कम होती है, जिससे मिट्टी, जल और वायु प्रदूषण कम होता है। इसकी कम मात्रा की आवश्यकता के कारण यह किसानों के लिए अधिक प्रभावी होने सहित सरकार पर सब्सिडी का बोझ को भी कम कर रहा है।
