छत्तीसगढ़

दिव्यांगता को हराकर समूह ने चुनी रीपा से उद्यमी बनने की राह

— रीपा से पेंड्री (जॉ) गौठान में आत्मनिर्भरता की कहानी लिख रहा समूह
जांजगीर चांपा। सफलता एक दिन में नहीं मिलती, बल्कि उसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, और जब मेहनत सफल होती है तो उसका स्वाद दुगुना हो जाता है। ऐसी ही कुछ महिलाएं हैं, जिन्होंने दिव्यांगता को हराकर उद्यमी बनने की राह चुनी और उस पर आगे बढ़ते हुए सफलता की सीढ़ी चढ़ने लगी। आज यह समूह गौठान में महात्मा गांधी ग्रामीण औद्यौगिक पार्क (रीपा) से जुड़कर अपने कदमों को आगे बढ़ा रहा हैं।
जांजगीर-चांपा जिले की जनपद पंचायत नवागढ़ के ग्राम पेण्ड्री (जॉं) में बनाए गए सुराजी गांव गौठान में ग्रामीण औद्योगिक पार्क (रीपा) के माध्यम से जय मां दुर्गा दिव्यांग समूह के 7 सदस्य एवं वैभव लक्ष्मी स्व सहायता समूह के 8 सदस्यों ने मिलकर मशरूम का कार्य शुरू किया। जय मां दुर्गा समूह के सदस्य किसी ने किसी रूप में शारीरिक रूप से दिव्यांग है। फिर भी इस समूह ने अपने आपको दिव्यांग नहीं समझा उनके इस साहस को राज्य सरकार की महत्वकांक्षी योजना नरवा, घुरवा, गुरवा, बाड़ी के तहत बनाई गई गौठान में शुरू किये गये रीपा से जोड़ते हुए उन्हें शेड बनाकर दिया। इस शेड में मशरूम की खेती करते हुए अपने आपको सक्षम बनाना शुरू किया। जनपद पंचायत नवागढ़ से मिली जानकारी के अनुसार रीपा योजना से 3 मशरूम शेड एवं उत्पादन, प्रशिक्षण, एक्सपोजर विजिट आदि के साथ आर्थिक सहायता के रूप में सहयोग किया गया। जय मां दुर्गा समूह की अध्यक्ष तिरूपति कश्यप बताती हैं कि वे बचपन से दोनों पैरों से दिव्यांग होने के कारण वैशाखी ही उनका सहारा बनी हुई थी, जिसको लेकर वह चलती हैं, तो वहीं सचिव रनिया कश्यप एवं श्यामकली कश्यप, बिंदु बाई, रामकृष्ण, कृष्ण कुमार, संतोषी महिला पुरूष सदस्य हैं जो शारीरिक रूप से दिव्यांग है।
वहीं वैभव लक्ष्मी समूह में बसंती कश्यप, निर्मला कश्यप, सेवती कश्यप, गंगोत्री कश्यप, सुकमत, शांतिबाई, रीना सूर्यवंशी एवं सगुना बाई हैं, जो मशरूम उत्पादन से जुड़ी है। जय दुर्गा मां समूह की अध्यक्ष तिरूपति कश्यप बताती हैं कि रीपा योजना के अंतर्गत मशरूम का उत्पादन शुरू किया है, इससे उनके आत्मबल में वृद्धि हुई है, लेकिन पहले ऐसा नहीं था, उनका कहना है कि गांव में दिव्यांग ऊपर से महिला होने के चलते कोई काम नहीं मिलता था, इसलिए गांव के अन्य दिव्यांगों को लेकर समूह का गठन किया, इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा, ऐसे में रीपा योजना हम जैसे दिव्यांगों के लिए वरदान साबित हुआ। पेंड्री गौठान में रीपा योजना से मिले शेड के सहारे आगे बढ़ना शुरू किया। दोनों समूह में शामिल महिला, पुरूष ने मिलकर मशरूम की पहली फसल 15 सौ किलोग्राम का उत्पादन किया। इस कार्य को करने में 1 लाख 50 हजार रूपए की लागत आई। मशरूम को बाजार में बेचकर 3 लाख रूपए की आय अर्जित की। मशरूम की लागत को काटकर शुद्ध लाभ समूह को 1 लाख 50 हजार रूपए का हुआ। इस लाभ को समूह के सदस्यों ने बराबर बांट लिया और अपने परिवार के लिए आर्थिक सहयोग किया। समूह अब दूसरी बार मशरूम के उत्पादन की तैयारी में जुट गया है, मशरूम उत्पादन के बैग तैयार कर लिये गये हैं, इससे और अधिक बेहतर परिणाम आने की उम्मीद है।

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