कवर्धा 02 मई 2025/sns/- वर्षों बाद कबीरधाम जिले में नेत्रदान की एक मिसाल कायम हुई है, जिसने पूरे जिले को संवेदनशीलता और सेवा-भावना का संदेश दिया है। जिले की श्रीमती संगीता जैन 56 वर्ष ने अपना नेत्र दान कर लोगों को नेत्रदान करने के लिए प्रेरित किया है। कलेक्टर श्री गोपाल वर्मा ने इस पुण्य कार्य के लिए स्वर्गीय श्रीमती संगीता जैन के परिवार को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह कार्य समाज को नेत्रदान के लिए प्रेरित करेगा और अनेक दृष्टिहीनों के जीवन में रोशनी लाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
देश में लाखों लोग आंखों की रोशनी के लिए प्रतीक्षारत हैं। ऐसे में नेत्रदान का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। यदि कोई व्यक्ति अपनी आंखें दान करता है, तो वह नेत्रविहीन व्यक्तियों के जीवन में उजाले की किरण बन सकता है। यह एक ऐसा पुण्य कार्य है, जो किसी को अंधकार से निकालकर रंगों से भरी नई जिंदगी की ओर ले जाता है। विकासशील देशों में कॉर्नियल रोग दृष्टि दोष और अंधत्व के प्रमुख कारणों में से एक हैं। इन स्थितियों में नेत्रदान जीवनदायिनी भूमिका निभाता है।
कई वर्षों के अंतराल के बाद कबीरधाम जिले में नेत्रदान की एक मिसाल पेश की गई है। जिले की 56 वर्षीय श्रीमती संगीता जैन ने मृत्यु के उपरांत अपने नेत्र दान किए हैं, जिससे वे समाज के लिए प्रेरणा बन गई हैं।
इस पुण्य कार्य में उनके पति समाजसेवी श्री महावीर खातेड, पुत्र गौरव खातेड, रौनक खातेड और पुत्री प्रेक्षा का योगदान अत्यंत सराहनीय रहा है। उनका यह निर्णय न केवल नेत्रदान के प्रति जागरूकता बढ़ाता है, बल्कि दूसरों को भी इस पुनीत कार्य के लिए प्रेरित करता है।
नेत्रदान करने वाले परिवार जनों को मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. बी.एल.राज, डीपीएम श्रीमति अनुपमा तिवारी, डॉ. केशव ध्रुव सिविल सर्जन, डॉ जितेन्द्र वर्मा, बालाराम साहू रेडक्रास ने भी परिवार के इस निर्णय की सराहना करते हुए इसे समाज के लिए प्रेरणास्पद बताया। नेत्रदान में डॉ क्षमा चोपडा नेत्र रोग विशेषज्ञ, मेडिकल आफिसर डॉ.राजीव ठाकुर, प्रभात गुप्ता, अश्वनी शर्मा नेत्र सहायक , हेमलता मेरावी ,मेलाराम यादव का विशेष योगदान रहा।
डॉ क्षमा चोपडा नेत्र रोग विशेषज्ञ ने बताया कि मृत्यु के बाद नेत्रदान यदि कोई व्यक्ति जीवित रहते हुए नेत्रदान करना चाहता है तो नेत्रदान संभव नहीं है। मृत्यु के बाद नेत्रदान के लिए 6 घंटे से अधिक का समय नहीं होना चाहिए। कॉर्निया डोनर को आई बैंक तक ले जाने की जरूरत नहीं है। निकटतम नेत्र बैंक के प्रतिनिधि दाता के आवास पर आएंगे। नेत्रदान के बारे में प्रचलित मिथकों में से एक यह है कि यह अंतिम संस्कार की योजनाओं को प्रभावित करता है और दाता के चेहरे को विकृत कर देता है। यह हर तरह से असत्य है। आँख दान करने के सरल कार्य का दाता की उपस्थिति या अंतिम संस्कार की योजनाओं पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। क्योंकि आँख निकालने में 15.20 मिनट लगते हैं। उम्र की परवाह किए बिना कोई भी व्यक्ति अपनी आंखें दान कर सकता है। अगर किसी ने नेत्रदान नहीं किया है तो भी वह नेत्रदान कर सकता है। दाता और प्राप्तकर्ता दोनों की पहचान गुप्त रखी जाती है। आंखें दान करने से कभी चेहरा नहीं बिगड़ता है। यह प्रक्रिया मशीन की मदद से 15 मिनट में आंखे निकाल लिया जाता है। नेत्रदान के प्रति जागरूक होकर अधिक से अधिक लोग नेत्रदान कर अनेक लोगों की जीवन में रोशनी ला सकते हैं।