चयनित प्रतिभागी जिला स्तरीय आयोजन में होंगे शामिल
21 एवं 22 मार्च को होगा जिला स्तरीय प्रतियोगिता का आयोजन
बीजापुर मार्च 2025/sns/ बस्तर पण्डुम-2025 का ब्लॉक स्तरीय आयोजन जिले के चारों विकासखंड में 17 से 19 मार्च तक आयोजित हुआ। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के पहल पर स्थानीय जनजातियों, सांस्कृतिक परंपराओं, खान-पान, रिति-रिवाज, वेश-भूषा, नृत्य, गीत संगीत को संर्वधित एवं संरक्षित रखने तथा स्थानीय कलाकारों के प्रतिभाओं में निखार लाने हेतु बस्तर पण्डुम का आयोजन किया गया।
जिसमें प्रथम चरण का आयेाजन ब्लॉक स्तर पर किया गया। उक्त आयोजन में ग्रामीण आदिवासियों ने बढ़चकर पूरे उत्साह से भाग लिया और अपने बोली-भाषा, रहन-सहन, सांस्कृतिक परंपराओं का बेहतर प्रदर्शन किया। बीजापुर एवं उसूर ब्लॉक में आज कार्यक्रम का समापन हुआ। समापन के दौरान प्रत्येक विद्याओं के विजेता दलों को 10 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि प्रदान किया गया। बीजापुर ब्लॉक के विजेता प्रतिभागियों में जनजातिय नृत्य में प्रथम स्थान मोरमेड मांदरी बाजा, जनजाजीय नाट्य में प्रथम स्थान संतषपुर कोडराज जात्रा, वाद्ययंत्र में प्रथम स्थान पापनपाल सींगबाजा, पेय पदार्थ एवं व्यंजन में प्रथम स्थान निर्मला साहनी एवं टीम ईटपाल, जनजातीय आभूषण एवं वेशभूषा रामचरण एवं अंजली ईटपाल, जनजातीय शिल्प एवं चित्रकला श्री डूमा कुडियम एवं जनजातीय गीत में ग्राम पंचायत कोडेपाल को प्रथम स्थान प्राप्त किया। इस अवसर पर नगरपालिका अध्यक्ष श्रीमती गीता सोम पुजारी, उपाध्यक्ष श्री भुवन सिंह चौहान एवं पार्षदगण, एसडीएम बीजापुर श्री जागेश्वर कौशल एवं सीईओ जनपद पंचायत हिमांशु साहू सहित जनप्रतिनिधि, अधिकारी-कर्मचारी एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
सात विद्याओं पर आधारित रहा बस्तर पण्डुम का ब्लॉक स्तरीय प्रतियोगिता
ब्लॉक स्तर से चयनित टीम जिला स्तर पर शामिल होंगे। जिला स्तर पर चयनित होने के उपरांत संभाग स्तर पर सात विद्याओं में अपना प्रदर्शन करेंगे। जिसमें जनजातीय नृत्य के अंतर्गत गेड़ी, गौर-माड़िया, ककसार, मांदरी, दण्डामी, एबालतोर, दोरला, पेंडुल, हुलकीपाटा, परब, घोटुलपाटा, कोलांगपाटा, डंडारी, देवकोलांग, पूसकोलांग (रिति रिवाज, तीज त्यौहार, विवाह पद्धति एवं नामकरण संस्कार आदि) जीतने कोकरेंग (आखेट नृत्य), जनजातीय गीत कें अंतर्गत घोटुलपाटा, लिंगोपेन, चैतपरब, रिलो, लेजा, कोटनी, गोपल्ला, जगारगीत, धनकुल, मरमपाटा, हुलकीपाटा (रिति रिवाज, तीज त्यौहार, विवाह पद्धति एंव नामकरण संस्कार आदि), जनजातीय नाट्य कें अंतर्गत माओपाटा, भतरा, जनजातीय वाद्ययंत्रों का प्रदर्शन- धनकुल, ढोल, चिटकुल, अकुम, बावासी, तिरडुड्डी, झाब, मांदर, मृदंग, बिरिया ढोल, सारंगी,गुदुम , मोहरी, सुलुड, मुंडाबाजा, चिकारा, जनजातीय वेशभूषा एवं आभुषण का प्रदर्शन- लुरकी, करधन, सुतिया, पैरी, बाहुंटा, बिछिया, ऐंठी, बन्धा , फुली, धमेल, नांगमोरी, खोंचनी, मुंदरी, सुर्रा, सुता, पटा, पुतरी, ढार, नकबसेर, जनजातीय शिल्प एवं चित्रकला का प्रदर्शन – घड़वा , माटी कला, काष्ठ, पत्ता, ढोकरा, लौह, प्रस्तर, गोदना, भित्तीचित्र, शिसल, कोड़ी, शिल्प, बांस की कंघी,गीकी, (चटाई) घास के दानों की माला एवं जनजातीय पेय पदार्थ एवं व्यंजन का प्रदर्शन- सल्फी, ताड़ी, छिंदरस, हंडिया, पेज, कोसमा, माड़िया या मांड़, चापड़ा (चींटी की चटनी) अमारी शरबत एवं चटनी शामिल था।

