छत्तीसगढ़

कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा धान में पेनिकल माईट प्रबंधन पर दी गई सलाह

रायगढ़, 15 सितम्बर 2023/ इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय कृषि विज्ञान केन्द्र, रायगढ़ ने फसलों में होने वाले पेनिकल माईट के प्रकोप के संबंध में सलाह दी है। उन्होंने कहा कि सही समय में सही कृषि दवाई का उपयोग किया जाए ताकि फसलों को नुकसान होने से बचाया जा सके। पेनिकल माईट का प्रकोप सितम्बर-अक्टूबर माह में अधिक होता है। यदि पिछले वर्ष धान में पेनिकल माईट का प्रकोप हुआ है तो वर्तमान फसल मौसम में माईट प्रबंधन उपाय आवश्यक है। पेनिकल माईट नग्न ऑखों से दिखाई नहीं देता है। लीप शीथ के अंदर इसे देखने के लिए न्यूनतम 20& हेंड लेंस की आवश्यकता होती है, वयस्क माईट भूसे के रंग, अण्डाकार एवं लगभग 250 माइक्रोन लम्बाई के होते है। नर कीट अधिक सक्रिय होते और पत्ती सतह पर चलते हुए हैंड लेंस से देख सकते है। तापमान के आधार पर 7-12 दिन में एक सम्पूर्ण जीवन चक्र पूर्ण कर लेते है।
यह कीट अंकूरण से लेकर फसल पकने तक प्रत्यक्ष रूप से पत्ती शिरा, लीफ शीथ व दाने का नुकसान करता है एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोगजनकों को बढ़ावा देती है। जिससे बांझ अनाज सिंड्रोम, शीथ रॉट, मुड़ा हुआ गर्दन, खाली या आंशिक भरे दाने के साथ भूरे रंग के साथ विकृत दाने का विकास होता है। लीप शीथ के नुकसान से पौधे की प्रकाश संश्लेषण एवं प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे लगभग 80 प्रतिशत तक उत्पादन में कमी आ सकती है। इसका प्रकोप स्वर्णा, कर्मा मासुरी, सुगंधित धान, संकर किस्म, महामाया, सांभा आदि किस्मों में माईट का ज्यादा प्रकोप होता है।
पूर्वोपाय-ग्रसित क्षेत्र मे फसल कटाई के बाद जुताई करें जिससे सर्दियों में फिर से नये पौधे न निकल पायें। ग्रसित क्षेत्रों मे धान के अलावा अन्य वैकल्पिक फसल को बदलकर लगायें। कम स्तर पर माईट की संख्या पकडऩे के लिए रोपाई के 15 दिन बाद नमूना ले एवं रबी मे धान फसल लेने से बचें।
चूंकि माईट कीट ना होकर के एक प्रकार की मकड़ी की प्रजाति है अत: इसके रासायनिक प्रबंधन के लिए कीटनाशक की जगह मकड़ीनाशक का उपयोग करना चाहिए। इसके लिए पहला छिड़काव गभोट आने के समय व दूसरा छिड़काव 2-3 बाली आने के स्थिति में हेक्साथियोजोक्स 5.45 प्रतिशत ईसी का 250 मिली प्रति एकड या प्रोपरजाइट 57 प्रतिशत ईसी का 500 मि.ली. प्रति एकड या स्पायरोमेसिफेन 22.9 प्रतिशत एस.सी. का 150 मि.ली. प्रति एकड या एबोमेक्टिन 1.8 प्रतिशत 100 मि.ली. प्रति एकड या फेनपायरोक्सीमेट 5 प्रतिशत ईसी का 300 मि.ली. प्रति हेक्टयर उपयोग करें। इनमें से किसी भी एक मकड़ीनाशक के साथ प्रोपीकोनाजोल 25 ईसी का 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर सुबह या शाम के समय छिड़काव करना चाहिए।

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