सुकमा ,जून 2022/ पहले जिन गांव में गोलियों की गूंज हुआ करती थी, वहां आज स्कूलों की घंटियां बजती है। जिन गांवों में पहले हिंसा के भय से बच्चे घर में दुबक कर बैठ जाते थे, आज बस्ता पकड़े स्कूल जाते हैं। बच्चों को बस्ता पकड़े स्कूल की तरफ भागते देख मन को खुशी मिलती है। यह कहना है मिनपा गांव के निवासी श्री राजा पोडियाम और करीगुण्डम के मडकम मासा का, जो बदलते सुकमा के साक्ष्य बन रहे है। वे बताते हैं, की एक समय था जब उनके गांव में स्कूल था, बच्चे हस्ते खेलते स्कूलों में जाते, सारा दिन पढ़ते और घर आकर उसे दोहराते। फिर क्षेत्र में नक्सल आतंक बढ़ा और वर्ष 2006 में नक्सलियों ने जिले के लगभग 123 स्कूलों को धवस्त कर दिया। जिनमे उनके गांव मिंपा का स्कूल भी था, जहां कभी वह खुद पढ़ने जाया करते थे।
श्री पोडियम ने कहा की वे अपनी बेटी को भी खूब पढ़ाना चाहते थे, मगर यह संभव नहीं हुआ, आज वह शादी के लायक हो गई है। पर वह अपने बेटे पोडियाम पांडू को अवश्य पढ़ाएंगे। पूछने पर पांडू ने बताया की वह बड़ा होकर गुरुजी बनना चाहता है, और गांव के बच्चों को पढ़ाना चाहता है।
स्कूल के ध्वस्त हो जाने से वहां के बच्चे शिक्षा से दूर होते चले गए, मानो बच्चों के भविष्य पर अंकुश लग गया हो, उनका सुंदर भविष्य हिंसा की भेंट चढ़ अंधकार मय हो चला। शासन की पहल से बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखने के लिए बच्चों को अंदरूनी गांव से निकालकर मुख्य मार्ग के समीप बसे आश्रम, पोटा केबिन आदि में प्रवेशित किया है, जहां नक्सल हिंसा का प्रभाव कम था।
पर आज मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के मार्गदर्शन और उद्योग मंत्री एवं क्षेत्रीय विधायक श्री कवासी लखमा के प्रयासों की बदौलत मिनपा, कारीगुण्डम, जगरगुण्डा, किस्टाराम, कामाराम जैसे अंदरूनी क्षेत्रों में बंद पड़े स्कूलों का पुनः संचालन किया जा रहा है। सुकमा में वर्तमान स्थिति में 123 बंद पड़े स्कूलों में से 97 का संचालन प्रारंभ हो चुका है, जहां स्थानीय शिक्षित युवक ही शिक्षादूत बनकर अंधकार को चीरते हुए ज्ञान का दीपक जला रहे है। इन 97 स्कूलों में वर्तमान में 3973 छात्रों की दर्ज संख्या है, जो आने वाले समय में निश्चित ही बढ़ेगी।
