छत्तीसगढ़

केंद्र सरकार और राज्य सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन में अग्रणी ब्लाक रहा पाटन

दुर्ग 13 अप्रैल 2022/ अपनी सशक्त पंचायतों एवं ग्रामीण विकास पर ठोस कार्य करते हुए पाटन ब्लाक ने देश भर में अपना परचम लहराया है। 24 अप्रैल को पाटन ब्लाक को पंडित दीनदयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तिकरण सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। इसके पीछे पंचायत प्रतिनिधियों और सरकारी अमले के साथ ही पाटन ब्लाक के हजारों ग्रामीणों की कड़ी मेहनत निहित है। पाटन ने यह उपलब्धि केंद्र सरकार और राज्य सरकार की योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के आधार पर प्राप्त की है।
मनरेगा का प्रभावी क्रियान्वयन- देश भर में जब लाकडाउन की वजह से लोगों की गतिशीलता थमी हुई थी। पाटन में पूरी सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मनरेगा के कार्य जारी थे। वर्ष 2020-21 में 59 हजार मजदूरों ने मनरेगा के माध्यम से कार्य किया और वर्ष 2021-22 में 55 हजार मजदूरों ने मनरेगा के माध्यम से कार्य किया। इन मजदूरों में महिला श्रमिकों को प्रतिशत भी काफी रहा। मनरेगा के माध्यम से सबसे ठोस कार्य जल संरक्षण की संरचनाओं के रूप में हुआ। नरवा स्ट्रक्चर के माध्यम से भूमिगत जल के संरक्षण के कार्य शुरू हुए। नरवा प्रथम चरण का क्रियान्वयन जिन गांवों में हुआ, सभी में भूमिगत जल के स्तर में शानदार वृद्धि हुई और किसानों ने दूसरी फसल ली।
गौठानों का निर्माण और गोधन न्याय योजना के लाभ- वर्ष 2020-21 में पाटन ब्लाक में 76 गौठान बने और वर्ष 2021-22 में 31 गौठान बने। इनके माध्यम से एक लाख चौदह हजार क्विंटल गोबर खरीदी हो चुकी है। गौठानों को रोजगारमूलक गतिविधियों के केंद्र के रूप में स्थापित किया जा रहा है। मिर्च-मसाला आदि के उत्पादन की यूनिट गौठानों में आरंभ की गई। तेल पेराई की यूनिट भी आरंभ की गई है। कुर्मीगुंडरा जैसे गौठानों में आस्ट्रेलियन प्रजाति के केंचुआ आदि के उत्पादन के लिए भी कार्य किया जा रहा है।
गोबर से बिजली जैसे नवाचार- पाटन के सिकोला गौठान में गोबर से बिजली बनाने का कार्य शुरू हुआ। बिजली जैसी चीज किसी गौठान में बनाई जा सकती है अथवा ग्रामीण भी बिजली बना सकते हैं यह सोचना भी कठिन है लेकिन इस कल्पना को वास्तविकता में बदल दिया गया है। सांकरा में आजीविकामूलक गतिविधियों के लिए डोम बनाया गया है। यहां अष्टगंध जैसे उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है। यहां उत्पादित हो रहे अष्टगंध की माँग पूरे देश में है और इटली, इंडोनेशिया जैसे देश भी इसका आयात करते हैं।

लाकडाउन में भी आत्मनिर्भरता का सपना पूरा- लाकडाउन के मौके पर भी पाटन ब्लाक के गांवों को सब्जी जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। केसरा और बोरेंदा की बाड़ियों में जैविक खाद से सब्जी तैयार होती रही और पूरे गांव की सब्जी की समस्या दूर हुई।
बरसों से बंद पड़ी नहरें आरंभ, सोलर सिंचाई का दायरा बढ़ा- सिपकोना जैसी नहर प्रणाली काफी जर्जर हो चुकी थी, इसे ठीक कराया गया। कौही, बोरेंदा आदि में सोलर माध्यम से सिंचाई का दायरा बढ़ाने की दिशा में काम किया गया। नरवा योजना के माध्यम से भूमिगत जल का स्तर बढ़ा और इससे कृषकों को स्थायी रूप से लाभ हुआ।

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