राजनादगांव, 14 जुलाई 2025/sns/- खरीफ फसलों की बोनी के साथ ही किसानों के लिये अनावश्यक रूप से खेतों में उगने वाले खरपतवार एक बहुत बड़ी समस्या बन जाती है। अच्छे गुणवत्ता के बीज एवं आदान सामग्रियों के उपयोग करने के बाद भी खरपतवारों से निपटना बहुत कठिन होता है। खरपतवार फसल के बीज उगने से लेकर फसल कटाई तक हर अवस्था में फसलों को प्रभावित करते है तथा नमी, पोषक तत्व व स्थान आदि के लिए फसलों के साथ प्रतिस्पर्धा करके फसलों की वृद्धि एवं गुणवत्ता में कमी करते है। इसके अतिरिक्त खरपतवार फसलों को प्रभावित करने वाले कीट एवं रोग व्याधियों के जीवाणु को भी शरण देते है, जिससे कृषकों को विपरीत परिस्थितियों भारी आर्थिक नुकसान की संभावना बढ़ जाती है। खरपतवार फसलों की उपज में 10 से लेकर 85 प्रतिशत तक की कम कर सकते है।
खरपतवार विभिन्न प्रकार के होते है, परन्तु सकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार बहुतायत में खरीफ में उगते है। जैसे धान के खेतों में जंगली सांवा, सवई घास, जंगली कोदो, दूब घास आदि घास वर्गीय प्रमुख खरपतवार है तथा कनकौवा, कांटेदार चौलाई, पत्थरचट्टा, भंगरैया, महकुआ आदि चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार है। साथ ही खरीफ के दलहनी एवं तिलहनी फसलों में महकुंआ, हजारदाना,दूधी, सांवा, कनकौवा, सफेद मुर्ग तथा मोथा विशेष रूप से फसलों को प्रभावित करते है। फसलों के विभिन्न क्रांतिक अवस्थाओं में कृषकों को समझदारी के साथ खरपतवारों के नियंत्रण के लिये प्रयास करने चाहिए। धान की सीधी बुवाई वाले खेतों में 15 व 45 दिन बाद रोपा धान में 20 व 40 दिन बाद तथा खरीफ दलहनी फसलों में 15 व 20 दिन तथा तिलहनी फसलों में बुआई के 30 व 45 दिन में फसलों की महत्वपूर्ण क्रांतिक अवस्था में खेतों को खरपतवाररहित रखना चाहिए। इन खरपतवारों की रोकथाम के लिये बुआई के पूर्व ही यांत्रिक विधियों से नियंत्रण कार्य किया जाना चाहिए, जैसे-स्टीलसीड बैड तकनीक, मृदा सूर्यीकरण तकनीक, मल्चिंग पॉलीथिन, यांत्रिक विधि के तहत पहिये पर आधारित कृषि यंत्र, कोनोवीडर, हाथ से निंदाई, जैविक के तहत मल्चिंग, पुआल आदि माध्यम से किया जा सकता है। परन्तु खरपतवारों की अधिकता होने पर रासायनिक खरपतवार नाशी का उपयोग विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार किया जा सकता है।
इस प्रकार करें खरपतवारनाशी दवाओं का उपयोग:-
धान के फसलों में खरपतवारों के नियंत्रण के लिये अंकुरण के पूर्व घास कुल एवं चौड़ी पत्ती वाली खरतपवार के लिये पेण्डीमेथॉलीन 1 किलो ग्राम हेक्टेयर सभी प्रकार के खरपतवार के लिये पेण्डीमेथॉलीन + पाइराजोसल्फ्यूरान 900 + 20 ग्राम हेक्टेयर या प्रेटीलाक्लोर + पाइराजोसल्फ्यूरान 600 + 15 ग्राम हेक्टेयर का प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। इसी तरह अंकुरण पश्चात 18-20 दिन बाद सभी प्रकार के खरपतवार के लिये बिसपायरीबैक सोडियम 25 ग्राम हेक्टेयर या एजिमसल्फ्यूरान 35 ग्राम प्रति हेक्टेयर या पैनाक्सूलाम + सायहेलोफॉप 120 ग्राम हेक्टेयर से उपयोग किया जा सकता है। इसके साथ घास वाली खरपतवार के लिये फेनाक्सायप्रॉप सेफनार 60 ग्राम हेक्टेयर या सायहेलोफॉप 75 से 80 ग्राम हेक्टेयर का इस्तेमाल किसान भाई कर सकते है।
खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए अन्य उपाय –
धान के खेतों में रोपाई के 20 दिन बाद तथा 40 दिन बाद हाथ या खुरपी की सहायता से खरपतवारों को निकाल देने से काफी नियंत्रण होता है। साथ ही शक्ति चलित या हस्त चलित कृषि यंत्रों जैसे-पैडी विडर या कोनो विडर का उपयोग कर भी खरपतवार नियंत्रित किये जा सकते है।
खरपतवार नाशी का उपयोग करते समय सावधानियां –
खरपतवार नाशी छिड़काव हेतु नैकशैक स्प्रेयर के साथ फ्लैटफेन नोजल का प्रयोग करें, किसी भी फसल में खरपतवार नाशी प्रयोग करते समय खेत में नमी होना चाहिए तथा खरपतवारनाशियों का छिड़काव शाम के समय या हवा अधिक तेेज न होने की स्थिति में ही करे। शरीर को सुरक्षित रखने के लिये विशेष पोषाक पहन कर रसायन का छिड़काव करना चाहिए।