- आयुर्वेद में हेपेटाइटिस रोग के उपचार के संबंध में दी गई जानकारी
- हेपेटाइटिस रोग के लक्षणों एवं बचाव के उपाय के संबंध में बताया गया
राजनांदगांव, जुलाई 2023। शासकीय आयुष पॉलीक्लीनिक राजनांदगांव में हेपेटाइटिस डे पर रोगियों को हेपेटाइटिस रोग, उसके लक्षणों, बचाव के उपाय के विषय में आयुर्वेद चिकित्साधिकारी डॉ. प्रज्ञा सक्सेना द्वारा जानकारी दी गयी। उन्होंने बताया कि हेपेटाइटिस मूल रूप से लीवर की बीमारी है। इस अवस्था में लीवर में सूजन आ जाती है। हेपेटाइटिस कई कारणों से होता है। वायरस संक्रमण, एल्कोहॉलिक, नॉनएल्कोहॉलिक फैटी लीवर, ऑटोइम्यून एवं दवाओं के अत्यधिक प्रयोग से होता है। वॉयरल हेपेटाइटिस 5 प्रकार का होता है । ए, बी, सी, डी, ई हेपेटाइटिस ए एवं ई संक्रमित व्यक्ति के मल में होता है। हेपेटाइटिस बी एवं सी संक्रमित व्यक्ति के खून, सीमन द्रवों के सम्पर्क में आने से होता है। लीवर हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। ये भोजन को पचाने के साथ खून से टॉक्सिन्स को भी साफ करने में भूमिका निभाता है। विश्व में इससे प्रभावित लोगों की संख्या एवं मृत्यु दर को देखते हुये, डॉ. बुरूच ब्लूमबर्ग जिन्होंने हेपेटाइटिस बी वायरस की खोज की। उनके जन्मदिन 28 जुलाई को विश्व हेपेटाइटिस डे के रूप में मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य इस बीमारी के विषय में लोगों को जागरूक करना है।
डॉ. प्रज्ञा सक्सेना ने बताया कि लक्षणों में भूख न लगना, हमेशा थकान महसूस होना, कमजोरी लगाना, मितली होना, पेट में दर्द, उल्टी होना, पेशाब में पीलापन, त्वचा एवं आंखों के सफेद भाग का रंग पीला होना, सिरदर्द, बुखार, वजन का कम होना, मांसपेशियों में दर्द है। इसके कारणों में अत्यधिक शराब सेवन, अधिक तेल मसाले वाला भोजन, दूषित खान पान, साफ-सफाई का अभाव है। गर्मी व मानसून में संक्रमण की वृद्धि हो जाती है। इसके अतिरिक्त हैपेटाइटिस बी एवं सी संक्रमित रक्त आधान, असुरक्षित सेक्स, गर्भवती माता से बच्चे को, संक्रमित व्यक्ति के रक्त, सीमन या शरीर के अन्य तरल द्रवों के सम्पर्क से, संक्रमित इंजेक्शन, सुई, रेजर, टूथब्रश इत्यादि के प्रयोग से होता है।
उन्होंने बताया कि हेपेटाइटिस बचाव के लिए साफ सुथरा भोजन, साफ पानी का प्रयोग करें। मसालेदार, तली भुनी चीजों का अधिक प्रयोग न करें। अधिक शराब व अन्य नशीले पदार्थों का सेवन न करें। रेजर, टूथब्रश, इंजेक्शन शेयर न करें। संक्रमित व्यक्ति की इस्तेमाल चीजें रेजर, कैंची, टॉवेल, कपड़े अलग रखें। असुरक्षित सेक्स से बचे। संक्रमित व्यक्ति के घाव को खुला न छोड़े। ब्ल्ड डोनेशन से पूर्व हैपेटाइटिस बी एवं सी की जांच अवश्य कराए, हेपेटाइटिस बी का वैक्सीनेशन अवश्य करायें। आयुर्वेद में कालमेघ, कुटकी, नागरमोथा, भृंगराज, दारूहल्दी, पुनर्नवा, रोहितक, भुई आंवला, मकोय, पित्तपापड़ा औषधियों का प्रयोग टैबलेट्स, सिरप, स्वरस एवं काढ़ा हिपैटोप्रोटैक्टिव के रूप में प्रयोग किया जाता है।