छत्तीसगढ़

ग्रीष्मकालीन जुताई से ठीक रहेगी मिट्टी की सेहत

राजनांदगांव , मई 2022। डॉ. खूबचंद बघेल पुरस्कार से सम्मानित कृषक श्री एनेश्वर वर्मा कहते है कि ग्रीष्मकालीन जुताई से मिट्टी की सेहत ठीक रहती है। उन्होंने कहा कि पुरखों कि कहावत है सर्व तपे जो रोहिणी, सर्व तपे जो भूरा, पर्व तपे जो जेठ की उपजे सातों तूरा। अर्थात् यदि रोहिणी नक्षत्र भर तपे और भू भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होगा। अच्छी पैदावार के लिए रबी फसलों की कटाई के तुरंत बाद गहरी जुताई कर ग्रीष्म ऋतु में खेत खाली रखना बहुत लाभदायक होता है। ग्रीष्मकालीन जुताई अप्रैल से जून माह तक कि जाती है। जहां तक हो सके किसान रबी फसल कटाई के तुरंत बाद मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर दें। क्योंकि खेत की मिट्टी में नमी मौजूद होने से बैल तथा ट्रेक्टर को कम मेहनत करनी पड़ती है। इस जोताई से जो ढेले पड़ते हैं। वह धीरे-धीरे हवा और बरसात के पानी से टूटते रहते हैं। साथ ही जुताई से जमीन के सतह में पड़ी फसल अवशेष पत्ते, पौधे के जड़, खेत में उगे हुए खरपतवार आदि नीचे दब जाते हैं, जो सडऩे के बाद खेत की मिट्टी में जीवाश्म, कार्बनिक खादों की मात्रा में बढ़ोत्तरी करते हैं, जिससे भूमि के उर्वरता स्तर और मृदा भौतिक संरचना में सुधार होता हैं।
ग्रीष्मकालीन जोताई के लाभ-
प्राकृतिक प्रभाव –
ग्रीष्मकालीन जुताई करने से खेत के खुलने से प्राकृतिक क्रियाएं भी सुचारू रूप से खेत की मिट्टी पर प्रभाव डालती हैं। वायु तथा सूर्य के किरणों का प्रकाश मिट्टी के खनिज पदार्थ को पौधे का भोजन बनाने में अधिक सहायक होते हैं। इसके अतिरिक्त खेत की मिट्टी के कणों की संरचना (बनावट) भी दानेदार हो जाती है। जिससे जमीन में वायु संचार एवं जल धारण क्षमता बढ़ जाती है।
कीट-रोग-खरपतवार का नियंत्रण
इस गहरी जोताई से गर्मी के तेज धूप से खेत के नीचे सतह पर पनप रहे कीड़े, मकोड़े, बीमारियों के जीवाणु, खरपतवार के बीज आदि मिट्टी के ऊपर आने से नष्ट हो जाता है।
वर्षा जल का संचय-
बारानी खेती बरसात पर निर्भर रहते हैं,अत: इस परिस्थिति में वर्षा जल का अधिक संचयन करने के लिए ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई नितांत आवश्यक है।
मिट्टी कटाव रूकना –
ग्रीष्मकालीन गहरी जोताई करने से बरसात के पानी द्वारा खेत मिट्टी के कटाव में भारी कमी होती है।

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