🌹💐 वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत 🌹💐
आज 6 नवम्बर रविवार कोपूरे वर्ष भर में केवल आज के दिन चढ़ता है भोलेनाथ को तुलसीपत्र और विष्णु जी को बिल्वपत्र*
सनातन धर्म मे 12 महीनों का अपना अलग अलग महत्त्व है लेकिन समस्त मासों में कार्तिक मास को अत्यधिक पुण्यप्रद माना गया है। इस माह मे स्नान , दान व दीपदान के अलावा समस्त प्रमुख तीज त्योहार होते है।
इस कार्तिक मास में बैंकुठ चतुर्दशी का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु जी के मिलन को दर्शाता है, इसलिए वैकुंठ चतुर्दशी को हरिहर का मिलन भी कहा जाता है।
ऐसा भी माना जाता है कि भगवान विष्णु चातुर्मास (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक) तक सृष्टि का सम्पूर्ण कार्यभार भगवान शिव को सौंपकर विश्राम करते हैं। आषाढ़ शुक्ल एकादशी – देवशयनी के दिन भगवान विष्णु जब विश्राम में जाते है इस समय से सम्पूर्ण सृष्टि का भार भगवान भोले नाथ जी पर आ जाता है। इस दिन से ही भगवान शिव व उनके परिवार की पूजा आरम्भ हो जाती है सबसे पहले महादेव जी के पूजन के लिये श्रावण मास शुरू हो जाता है बीच बीच मे और कई पर्व जैसे नागपंचमी में नाग की , स्कंद षष्ठी में कुमार कार्तिकेय जी की , पोला के दिन नन्दी बैल की , हरितालिका व्रत पार्वती जी की , फिर 11 दिन गणेश जी की पूजा , नवरात्रि देवी जी की , शरद पूर्णिमा में चंद्रदेव की ।
इस तरह चार माह के बाद जब देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं तो जन मानस के द्वारा तुलसी जी के साथ अपनी पूजा स्वीकार करते है और तुलसी जी के साथ सबसे पहले देवाधिदेव महादेव का पूजन करने काशी जी जाते है।
इसीलिये वैकुण्ठ चतुर्दशी को हरिहर का मिलन कहा जाता हैं अर्थात भगवान शिव और विष्णु का मिलन। विष्णु एवं शिव के उपासक इस दिन को बहुत उत्साह से मनाते हैं। भगवान शिव और विष्णु का मिलन को देखकर सभी देवी-देवता इसकी ख़ुशी में देव दिवाली मनाते हैं।
काशी पहुँचते ही भगवान विष्णु मणिकर्णिका घाट पर स्नान करते है। और एक हज़ार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प करते है। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया। एक पुष्प की कमी देखकर विष्णु जी ने सोचा कि मेरी आंखें भी तो कमल के ही समान हैं। ऐसा सोचकर अपनी आंख चढ़ाने को उद्द्यत हुए ।
विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले- “हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ कहलाएगी और इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। भगवान शिव ने इसी वैकुण्ठ चतुर्दशी को करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान करते हैं।
और आज के दिन से ही भगवान को ”कमल नयन’ और ‘पुंडरीकाक्ष’ कहा जाता है।
पूजन के बाद भगवान विष्णु, भगवान शिव को तुलसी पत्तियां प्रदान करते हैं और भगवान शिव , भगवान विष्णु को बेलपत्र देते है। अर्थात इस दिन शिव जी मे तुलसी मंजरी तथा विष्णु जी मे बिल्वपत्र चढ़ाया जाता है।
इसी दिन शिव जी तथा विष्णु जी कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगें। मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपना स्थान वैकुण्ठ धाम में सुनिश्चित करेगा।
भगवान शिव बैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही भगवान विष्णु को सृष्टि का कार्यभार वापस सौंपते हैं
उज्जैन, वाराणसी में इस दिन को धूमधाम से मनाया जाता हैं। उज्जैन में भव्य आयोजन किया जाता हैं। शहर के बीच से भगवान की सवारी निकलती हैं, जो महाकालेश्वर मंदिर तक जाती हैं। इस दिन उज्जैन में उत्सव का माहौल चारो ओर रहता है।
वैकुण्ठ चतुर्दशी पर ऐसे करें पूजा
प्रातः काल उठकर स्नान आदि दिनचर्या से निवृत होकर पूजा आरम्भ करें। पूजा में श्वेत कमल, चंदन, केसर, गाय का दूध, चंदन का इत्र, दही, मिश्री और शहद से अभिषेक करना चाहिए। भगवान को सूखे मेवे, गुलाल, कुमकुम सुगंधित फूल, और मौसमी फल का प्रसाद चढ़ाएं। मखाने का खीर बनाकर भोग लगाएं।
श्रीसुक्त, श्रीमदभागवतगीता और विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का 108 बार जाप करें। विष्णु भगवान की इस विधि से पूजा करने पर पापों से मुक्ति मिलने के साथ पुण्य भी बढ़ता है, सुख-समृद्धि बढ़ता है और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
शंकर भगवान की पूजा में सबसे पहले शिवलिंग पर गाय के दूध, दही , घी , शक्कर , शहद , पंचामृत , इत्र , भस्म आदि से अभिषेक करें। उसके बाद फूल, बिल्वपत्र, आंकड़ा, धतूरा, भांग, मिठाई, और मौसमी फल चढ़ाएं। प्रसाद चढ़ाने के बाद रुद्राष्टक, शिवमहिम्नस्त्रोत, पंचाक्षरी मंत्र आदि का पाठ करें।
वास्तु & ज्योतिष सलाहकार
पण्डित मनोज शुक्ला महामाया मन्दिर रायपुर 7804922620