छत्तीसगढ़

बनते घर-पूरे होते सपने प्रधानमंत्री आवास सहित विभागीय योजनाओं से लाभान्वित हुए वाल्बा नरसू


बीजापुर, 03 सितंबर 2025/sns/ – हमारे आस-पास ऐसी बहुत सी महिलाएं देखने को मिल जाती हैं, जो जीवन में चुनौंतियों का सामना करते हुए मजबूत बनी है। महिलाओं में अद्वितीय संघर्ष क्षमताएं हैं, ऐसे ही संगमपल्ली निवासी एकल महिला श्रीमती वाल्बा नरसू की कहानी हैं। पति के मृत्यु उपरांत अपने दूधमुहें बच्चे के साथ झोपड़ी और टपकती छत में पक्के आवास का सपना और अपने बच्चे को पालन -पोषण करने के साथ ही पढ़ाने-लिखाने की चुनौंती आसान नहीं थी। श्रीमती वाल्बा नरसू की इस संघर्ष में साथ मिला प्रधानमंत्री आवास योजना का। आवास मिलने की खुशी उनके आंखों में झलकती है, श्रीमती वाल्बा नरसू ने अपने आवास को प्यार से सजाया है, साफ-सुथरा घर, आंगन में गेंदे के फूल की खुशबू सुखद एहसास देते हैं।
श्रीमती वाल्बा नरसू की शादी 2005 में हुई थी, इनके पति स्व श्री वाल्बा सुबैया की मृत्यु 2016 में हो गई। पति खोने को दुख तो था ही साथ में पुत्र अंसुमन के लालन-पालन की जिम्मेदारी भी थी। नरसू बताती हैं उन दिनों उनके पास कच्ची मिटटी का मकान था, जिसमें बारिश के दिनों में छत टपकने के साथ सांप – बिच्छू का भी भय बना रहता था। टपकती छत के नीचे बच्चे को गोद में लेकर रोती थी कि अंसुमन के पिता होते तो हम लोग भी अपना पक्का मकान बनाकर ठीक से रहते। मेरे आधा एकड़ खेत है जिसमें मै धान लगाती हूं एवं मजदूरी कर अपना जीवन यापन कर रही थी।
  प्रधानमंत्री आवास योजना से 1 लाख 30 हजार रूपये की लागत से आवास की स्वीकृति मिली। जैसे ही पहली किश्त मिली मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, चूंकि मेरी वर्षों पुराने सपने के सााकार होने का समय आ गया था। मैं जल्द से जल्द आवास बनाने के लिए काम शुरू किया। जैसे जैसे आवास बनने लगा वैसे वैसे किश्त की राशि भी मेरे खाते में आती गई। आवास के साथ मुझे शौचालय भी स्वीकृत हुआ है। मेरे सपनों का आवास जब पूरा हुआ तो इसमें रंगरोगन कर आंगन में फूल भी लगाये हैं। वास्तव में प्रधानमंत्री आवास योजना हम जैसे गरीब महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। मुझे उज्जवला योजना अंतर्गत गैस सिलेंडर और चूल्हा भी मिला है। मेरा बेटा आज 10 वर्ष का हो गया है। उसे अच्छे से पढ़ाना चाहती हूं, वो वर्तमान में आत्मानंद स्कूल मद्देड़ में 5 वीं कक्षा की पढ़ाई कर रहा है।

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